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गोरखपुर

यूपी के इस शहर में जहरीली आबोहवा में सांस ले रहे लोग, हवा का प्रदूषण अलार्मिंग प्वाइंट तक पहुंचा

खतरा

गोरखपुरJun 07, 2019 / 03:01 pm

धीरेन्द्र विक्रमादित्य

air pollution

Air pollution

विकास की अंध दौड़ में हम अपनी आबोहवा को खराब कर रहे हैं। गोरखपुर में शहरियों को स्वच्छ हवा के लिए आने वाले दिनों में तरसना पड़ सकता है। शहर की हवा प्रदूषित होने से यह जहरीली होती जा रही है। हवा में घुलता जहर 100 माइक्रान/घनमीटर से अधिक के स्तर पर काॅलोनियों में रह रहा। सुखद यह कि पिछले कुछ सालों में इस क्षेत्र में वनक्षेत्र में बढ़ोत्तरी हुई है लेकिन आए दिन कटते पेड़ों का उपाय खोजे बगैर यहां के पर्यावरण को बचाया नहीं जा सकता।
शहर में बढ़ गया है प्रदूषण का स्तर, सांसों पर खतरा

अंधाधुंध निर्माण कार्य, बढ़ते वाहनों की संख्या ने गोरखपुर की आबोहवा में जहर घोल दिया है। शहर की स्थिति तो बेहद खराब है। यहां की हवा तमाम बार मानक से चार गुना-पांच गुना जहरीली हो जा रही है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो इस साल मार्च व अप्रैल में आरएसपीएम 150 से 210 माइक्रान/क्यूबिक मीटर था। शहर के व्यस्ततम गोलघर क्षेत्र में बीते अप्रैल में 190 माइक्रान/क्यूबिक मीटर तो यहां मार्च में आरएसपीएम 192 माइक्रान प्रति क्यूबिक मीटर रहा। गोरखनाथ क्षेत्र में प्रदूषण की वजह से हवा और जहरीली रही। यहां पिछले दो माह में हवा में प्रदूषण 185 से 200 माइक्रान/क्यूबिक मीटर रहा। करीब करीब यही हाल शहर के अन्य हिस्सों का रहा। हालांकि, रिहायसी काॅलोनियों में हवा कम जहरीली है। क्षेत्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड केे आंकड़ों के अनुसार काॅलोनियों में आरएसपीएम सवा सौ माइक्रान/क्यूबिक मीटर से डेढ़ सौ माइक्रान/क्यूबिक मीटर के आसपास रहा। विशेषज्ञ बताते हैं कि गोलघर, गोरखनाथ आदि व्यस्ततम क्षेत्रों में कई बार आरएसपीएम 400 माइक्रान/घनमीटर के आसपास पहुंच चुका है।
यह है मानक, कैसे होता है मापन

हवा में धूल के महीन कण भी होते हैं। यह धूल के कण तमाम तरह की जहरीली और अस्वास्थ्यकर चीजों को समेटे होते हैं। हवा में मौजूद धूल के कणों को आरएसपीएम यानी रेस्परेबल सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मैटर कहा जाता है। शुद्ध हवा में 10 माइक्रान/घनमीटर आरएसपीएम होता है। इससे अधिक होने पर हवा अशुद्धता की ओर बढ़ती जाती है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड विभिन्न क्षेत्रों में हवा के कणों में मौजूद कणों को एकत्र कर लैब टेस्ट करवाता है। हर आठ घंटे में एकत्र किए गए नमूनों का लैब टेस्ट कर हवा की शुद्धता/अशुद्धता की जांच की जाती है।
जिले में वनक्षेत्र के बढ़ने से थोड़ी राहत

गोरखपुर की बिगड़ती आबोहवा के लिए एक सुखद पहलू यह है कि यहां वनक्षेत्र में बढ़ोतरी हुई है। विकास के नाम पर जहां हरे पेड़ों का कटान तेजी से जारी है तो वहीं दूसरी ओर हरियाली में भी खासी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। वन विभाग की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले दो साल में गोरखपुर जिले में तीन फीसदी वन क्षेत्र में इजाफा हुआ है। 2015 में जिले का वन आवरण 76 वर्गकिलोमीटर था जो इस वक्त 80 वर्ग किलोमीटर से कुछ अधिक है।
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